भारत और साम्यवाद

978-81-934666-5-0

वाम प्रकाशन, New Delhi, 2019

Language: Hindi

149 pages

5.5" x 8.5"

Price INR 225.00
Book Club Price INR 158.00
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जिन्हें लगता है कि बाबासाहेब आंबेडकर साम्यवाद या मार्क्सवाद के खिलाफ थे वो भयानक पूर्वाग्रह के शिकार हैं। आंबेडकर का मार्क्सवाद के साथ बड़ा ही गूढ़ रिश्ता था। उन्होंने खुद को समाजवादी कहा है लेकिन ये भी सच है कि वो मार्क्सवाद से गहरे प्रभावित थे।

हालांकि मार्क्सवादी सिद्धांतों को लेकर उन्हें कई आपत्तियां थीं लेकिन दलितों के निहित स्वार्थों ने आंबेडकर को कम्युनिस्टों के कट्टर दुश्मन के रूप में स्थापित कर दिया और ‘वर्ग’ के जिस नजरिए से आंबेडकर इस समाज को देख रहे थे, दलितों ने उस नजरिए को पूरी तरह प्रतिबंधित कर दिया। प्रतिक्रियास्वरुप कम्युनिस्टों ने भी आंबेडकर और उनके विचारों पर प्रहार करना शुरू कर दिया।

1950 के दशक की शुरुआत में आंबेडकर ने एक किताब पर काम करना शुरू किया। जिसका शीर्षक वह भारत और साम्यवाद रखना चाहते थे लेकिन वह पूरी नहीं हो पाई। प्रस्तुत किताब उसी के बचे हुए हिस्सों का संकलन है। उसके अलावा इसमें उनकी एक और अधूरी किताब क्या मैं हिंदू हो सकता हूँ? का एक भाग भी संकलित किया गया है।

आनंद तेलतुम्बडे ने इस किताब की एक बेहद प्रभावशाली और तीक्ष्ण प्रस्तावना लिखी है। ये प्रस्तावना साम्यवाद के प्रति आंबेडकर के नजरिए को तो बताती ही है साथ ही साथ आंबेडकर और कम्युनिस्टों के बीच हुए विवादों और उन विवादों के ऐतिहासिक कारणों की पड़ताल भी करती है। तेलतुम्बडे इस प्रस्तावना में बताते हैं कि आंबेडकरवादियों और साम्यवादियों की आपसी एकता ही भारत के गरीबों और पीड़ितों को शोषणकारी शक्तियों के चंगुल से आजाद कर पाएगी।

आंबेडकरवादियों और साम्यवादियों दोनों धड़ों के लिए यह एक बेहद जरूरी किताब है। आंखें खोल देने वाली किताब।

Anand Teltumbde

Anand Teltumbde is a civil rights activist, political analyst, columnist and author of many books. He has had a long association with peoples’ struggles, spanning over three decades. Trained in technology and management he marshals his insights of the modern techno-managerial world to sharpen strategies of struggles. His recent books are Mahad: The Making of the First Dalit Revolt (Aakar, 2016), Dalits: Past, Present and Future (Routledge, 2016), Persistence of Castes (Zed Books, 2006), Anti-Imperialism and Annihilation of Castes (Ramai, 2004). A long-time opponent of Hindutva forces, he has been incarcerated by India’s right-wing government since 2020 on charges that appear fabricated.


B.R. Ambedkar

Born into an ‘untouchable’ family, Bhimrao Ramji Ambedkar (1891-1956) was one of India’s most radical thinkers. A brilliant student, he earned doctorates in economics from both Columbia University, New York, and the London School of Economics. In 1936, the year he wrote Annihilation of Caste, Ambedkar founded the Independent Labour Party. The ILP contested the 1937 Bombay election to the Central Legislative Assembly for the 13 reserved and 4 general seats, and secured 11 and 3 seats respectively. He was India’s first Minister for Law and Justice, and oversaw the drafting of the Indian Constitution. Ambedkar eventually embraced Buddhism, a few months before his death in 1956.