नागरिकता का काग़ज़ी खेल
जब तक आवाज़ बची है, तब तक उम्मीद बची है। इस श्रृंखला की अलग-अलग कड़ियों में आप अपने समय के ज्वलंत प्रश्नों पर लेखकों-कलाकारों-कार्यकर्ताओं की बेबाक टिप्पणियाँ पढ़ेंगे।
असम में 19 लाख लोग एनआरसी की आख़िरी सूची से बाहर हैं। गृह मंत्री अमित शाह ने 20 नवंबर 2019 को संसद में स्पष्ट घोषणा की है कि नागरिकता (संशोधन) क़ानून लाने के बाद इसे नए सिरे से पूरे मुल्क में लागू किया जाएगा। पूरे मुल्क में एनआरसी तैयार कराने के क्या मायने हैं? इसके निशाने पर कौन हैं? असम में इसके बनने की प्रक्रिया से क्या सबक़ मिलता है? अनागरिक घोषित कर दिए गए लोगों का मुस्तक़बिल क्या होगा? इन सवालों के जवाब तलाशने की कोशिश है यह पुस्तिका।
लेखक : हर्ष मंदर | वर्णा बालाकृष्णन | ज़मसेर अली | अब्दुल कलाम आज़ाद | सेंटर फ़ॉर इक्विटी स्टडीज़
सुबोध वर्मा | सुप्रकाश तालुकदार | संगीता बरुआ | तीस्ता सेतलवाड़ | एजाज़ अशरफ़
अजय गुडावर्थी | टी.के. राजलक्ष्मी