नया राजा नये क़िस्से
‘तो ऐसा करो! राजधानी के सभी गधों को पकड़ कर ज़िलाबदर कर दो!’ राजा ने अपना दूसरा और फाइनल आदेश सुना दिया।
पूरी राजधानी में ची पों ची पों होने लगी।
जब कर्मचारी गधे पकड़ रहे थे, तो वहीं पर दो बूढ़े खड़े हो कर सारा तमाशा देख रहे थे।
‘क्या कहते हो! राजधानी में अब गधे नहीं बचेंगे क्या!’ एक बूढ़े ने राज्य कर्मचारियों को सुनाते हुए दूसरे बूढ़े से पूछा।
‘हम एक भी न छोड़ेंगे चच्चा!’ एक युवा राज्य कर्मचारी पूरे जोश में बोला।
‘न बेटा! एक को तो छोड़ना ही पड़ेगा!’
राजतंत्र की विदाई हो गयी पर राजा विदा नहीं हुआ।
वह लोकतंत्र में भी चला आया, नये रूप-रंग के साथ। अब वह नये नाम से पुकारा जाता है, नये तरीक़े से चुना जाता है। राजशाही की तरह उसकी राजगद्दी हर हाल में सुरक्षित नहीं रहती इसलिए इसे बचाए रखने के लिए वह तरह-तरह की कवायदें करता रहता है। वह पुराने राजाओं की तरह अहंकारी और क्रूर है, लेकिन ख़ुशहाली और विकास का ढिंढोरा पीटता रहता है। अब राजा होगा तो दरबारी भी होंगे ही। नये राजा के नये चाटुकार आ गये हैं जिनकी चापलूसी से राजदरबार चमक रहा है।
ये हमारी व्यवस्था के क्षरण की कहानियां हैं जो बताती हैं कि जनतंत्र के सारे स्तंभ किस तरह राजा के भोंपू में बदल गये हैं। ये किस्से हमें गुदगुदाते हैं और हमारे समय के विद्रूप को उजागर करते हैं।