मुसाफ़िर की डायरी
उन दिनों दुनिया पर दूसरे महायुद्ध का ख़तरा मंडरा रहा था। चौबीस साल का एक नौजवान बम्बई से एक जहाज़ में रवाना हुआ और कोलंबो, सिंगापुर, शंघाई, जापान से उत्तर अमेरिका, यूरोप और मध्य एशिया होता हुआ पांच महीने के सफ़र के बाद हिंदुस्तान लौटा। उसकी डायरी उर्दू का पहला आधुनिक सफ़रनामा मानी जाती है।
ख़्वाजा अहमद अब्बास की भाषा जितनी सरल है उतनी ही जीवंत। उनकी नज़र में उतनी ही जुस्तजू है जितनी उनके नज़रिये में रौशन-ख़याली। मुसाफ़िर की डायरी के ज़रिये हम उनके साथ एक ज़बरदस्त और रोमांचक सफ़र पर निकलते हैं जिसमें हम मज़ेदार लोगों से मिलते हैं, नायाब जगहें देखते हैं और एक ऐसे दौर से रूबरू होते हैं जिसने दुनिया को बदल कर रख दिया।
मुसाफ़िर की डायरी 1940 में हाली पब्लिशिंग हाउस, किताब घर, देहली से उर्दू में प्रकाशित हुई थी। उसके बाद यह किताब खो सी गयी थी या यूं कहें भुला दी गयी थी। ख़्वाजा अहमद अब्बास मेमोरियल ट्रस्ट के सौजन्य से हमने इसे फिर प्रकाशित किया है। 1940 के बाद किसी भी ज़बान में यह उसका पहला संस्करण है।
ख़्वाजा अहमद अब्बास (7 जून 1914–1 जून 1987) लेखक, पत्रकार और फ़िल्मकार थे। आवारा, श्री 420, नीचा नगर, धरती के लाल, जागते रहो, सात हिंदुस्तानी और बॉबी जैसी शानदार फिल्मों का उन्होंने लेखन या निर्देशन किया। उन्हें चार बार राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार मिला और वह Cannes Film Festival के Palme d’Or और Karlovy Vary International Film Festival के Crystal Globe पुरस्कारों के भी विजेता रहे। वह 73 किताबों के लेखक थे और उन्हें पद्मश्री से नवाज़ा गया।