साहित्य, कला और सिनेमा

अंतःसंबंधों की पड़ताल

Jawarimal Parakh

978-93-92017-15-5

वाम प्रकाशन, New Delhi, 2024

Language: Hindi

408 pages

5.5 x 8.5 inches

Price $38.00
Book Club Price $26.00
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LWB1558

यह किताब साहित्यिक कृतियों के सिनेमाई रूपांतरण के सैद्धांतिक पक्षों पर प्रकाश डालती है, साथ ही सिनेमा के उन सब पहलुओं का भी सोदाहरण परिचय देती है जिन्हें फ़िल्म को समझने के लिए जानना ज़रूरी है।

लेखक ने हिंदी और अन्य भाषाओं की कई साहित्यिक कृतियों और उन पर बनी फ़िल्मों का तुलनात्मक अध्ययन करते हुए रूपांतरण प्रक्रिया की चुनौतियों पर विचार किया है। पुस्तक में भारतीय फ़िल्मों के तकनीकी विकास की भी एक झलक है। लेखक ने बताया है कि किस तरह कैमरे की गुणवत्ता, साउंड रिकॉर्डिंग और एडिटिंग के साथ-साथ संवाद अदायगी और गीतों की प्रस्तुति में बदलाव आया। इसमें अनेक क्लासिक फ़िल्मों की निर्माण प्रक्रिया और उससे जुड़े रोचक प्रसंग हैं।

पिछले एक-दो दशकों में प्रदर्शित कई हिंदी फ़िल्मों के ज़रिए फ़िल्म उद्योग के चरित्र की पड़ताल करने की भी कोशिश की गई है। बिमल रॉय, सत्यजित राय और मणि कौल जैसे दिग्गज निर्देशकों की विशिष्टताओं पर रोशनी डाली गई है और प्रेमचंद के संक्षिप्त फ़िल्मी सफ़र की भी चर्चा है।

Jawarimal Parakh

जवरीमल्ल पारख साहित्य, सिनेमा और मीडिया पर नियमित लेखन करते रहे हैं। अब तक उनकी पंद्रह पुस्तकें प्रकाशित हैं। उन्होंने टेलीविजन के लिए शैक्षिक और कथात्मक पटकथा लेखन भी किया है। वे भारतीय भाषा परिषद द्वारा प्रकाशित हिंदी साहित्य ज्ञानकोश (सात खंड) के संपादक मंडल के सदस्य रह चुके हैं। उन्हें प्रो. कुंवरपाल सिंह स्मृति सम्मान, घासीराम वर्मा साहित्य पुरस्कार, राजस्थान साहित्य अकादमी का विशिष्ट साहित्यकार सम्मान प्राप्त हुए हैं। वर्ष 2017 में इंदिरा गांधी मुक्त विश्वविद्यालय, नई दिल्ली से प्रोफेसर पद से सेवानिवृत्ति के बाद अब स्वतंत्र लेखन।