तीन नाटक
मजुमदार जिस नाटकीय दृष्टि से समकालीन कश्मीर को देखते हैं वह शोकाकुल, अति-यथार्थवादी, और कुछ हद तक डरावना भी है. यह दृष्टि उन तमाम मसलों पर लागू की जा सकती है जहां एक तरफ अपनी ताकत में इतराता एक देश है और दूसरी तरफ अपने मताधिकार से वंचित दबी हुई प्रजा. 'ईदगाह के जिन्नात' के साथ मजुमदार बुद्धिजीवियों, कलाकारों, और पत्रकारों के उस छोटे मगर बढ़ते वर्ग से जुड़ गये हैं, जो कश्मीर के बारे में चल रही तमाम अफवाहों और मुख्यधारा की ख़बरों का पर्दाफाश करने की हिम्मत दिखा रहा है. - मिर्ज़ा वहीद, गुएर्निका
मजुमदार कश्मीर की समस्या का समाधान नहीं तलाशते; वे केवल इसके प्रभावों और परिणामों को ज्वलंत नाटकीयता में लपेटकर हमारे सामने प्रस्तुत करते हैं. - माइकल बिलिंगटन, द गार्डियन
मजुमदार के बाकी नाटकों की तरह 'कौमुदी' भी एक ऐसा द्वंद्व प्रस्तुत करती है, जिसका कोई सरल समाधान नहीं है. यह नाटक जीवन और उसकी अभिव्यक्तियों से जुड़े आवश्यक प्रशन खड़े करता है, लेकिन मुठभेड़ दो स्पष्ट रूप से परिभाषित गुटों के बीच नहीं है, बल्कि एकाधिक आशयों पर निरंतर चलता रहता है. - शांता गोखले, इसी पुस्तक से