तनी हुई रस्सी पर
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संजय कुंदन की कविता वर्तमान में हमारे चारों तरफ घटित हो रहे विद्रूपों, विपर्ययों और रूपान्तरणों की बाहरी-भीतरी तहों, उनकी छिपी हुई परतों में जाती है और एक ऐसा परिदृश्य तामीर करती है जिसमें हम राजनीतिक सत्ता-तन्त्रों, तानाशाह व्यवस्थाओं की क्रूरता, धूर्तता और ज़्यादातर मध्यवर्गीय संवेदनहीनताओं को हलचल करते देख सकते हैं।