स्वरमुद्रा

भाग १ एवं २

Edited by Ashok Vajpeyi, Piyush Daiya

Setu Prakashan,

Language: Hindi

1136 pages

Price INR 400.00
Book Club Price INR 340.00
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LWB1469

हम अपनी पत्रिका स्वरमुद्रा के इस बृहत् विशेषांक के माध्यम से यही करने की कोशिश कर रहे हैं। उनके संगीत ने अपनी रसिकता के परिसर में सिर्फ़ संगीत प्रेमियों और संगीतवेत्ताओं को ही नहीं, अनेक अन्य अनुशासनों के समर्थ प्रयोक्ताओं को भी शामिल और रसरंजित किया था। इस रसिक-बिरादरी में कवि-लेखक, चित्रकार, वास्तुकार, रंगकर्मी, नृत्य-कलाकार आदि बड़ी संख्या में शामिल थे। इनमें से अनेक ने अपने-अपने ढंग और दृष्टि से उनपर उनके संगीत पर लिखा भी। हमने यह कोशिश की है कि इस विपुल सामग्री में से जो महत्त्वपूर्ण और मूल्यवान है, समझ और संवेदना से लिखा गया है वह हिन्दी के अलावा मराठी, अँग्रेज़ी, कन्नड़ आदि से अनूदित कर शामिल किया जाए। हमारे जाने जितना कुमारजी पर अनेक पीढ़ियों के रसिकों ने लिखा है उतना किसी और संगीतकार पर नहीं। इसी विशेषांक को हमें ११०० पृष्ठों के होने के कारण दो जिल्दों में समाहित करना पड़ा है। हो सकता है कि कुछ महत्त्वपूर्ण, फिर भी, छूट गया हो। महानता अपने आप में तो पर्याप्त होती है पर उसपर विचार और लिखना कभी पर्याप्त नहीं हो पाते : वे अपर्याप्त रहने के लिए, एक तरह से, अभिशप्त होते हैं।

Ashok Vajpeyi

समादृत कवि-आलोचक, संपादक और संस्कृतिकर्मी अशोक वाजपेयी का जन्म 16 जनवरी 1941 को तत्कालीन मध्य प्रदेश राज्य के दुर्ग में एक संपन्न सुशिक्षित परिवार में हुआ। उनके प्रशासनिक जीवन का एक लंबा समय मध्य प्रदेश, विशेषकर भोपाल में बीता जहाँ उन्होंने राज्य के संस्कृति सचिव के रूप में भी सेवा दी और कार्यकाल के अंतिम दौर में भारत सरकार के संस्कृति विभाग के संयुक्त सचिव के रूप में दिल्ली में कार्य किया। उन्होंने महात्मा गाँधी अंतर्राष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा के प्रथम उप-कुलपति और ललित कला अकादेमी के अध्यक्ष के रूप में भी कार्य किया।

अशोक वाजपेयी एक संस्कृतिकर्मी और आयोजक के रूप में भी विशिष्ट उपस्थिति रखते हैं। भोपाल में उनके प्रशासनिक कार्यकाल के दिनों में उनके द्वारा हज़ार से अधिक आयोजन कराए गए जो साहित्य और कला की विभिन्न विधाओं के प्रसार में अद्वितीय योगदान कहा जाता है। उस दौर में ‘भारत-भवन’ जैसे साहित्य-कला-संस्कृति आयोजन का पर्याय ही हो गया था। बाद के दिनों में रज़ा फ़ाउंडेशन एवं अन्य संस्थाओं के माध्यम से दिल्ली में भी उनकी सांस्कृतिक गतिविधियाँ बनी रही हैं।