आतम खबर
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पाठकों के सम्मुख कुछ आलेख है जो हमारी संस्कृति और समाज पर इतिहास और वर्तमान दोनों के परिपेक्ष्य में लिखे गए हैं। संस्कार की बात की गयी है और ज्ञान-विज्ञान के परम्पराओं की, जो हमारे यहाँ विराट और सुदृढ़ हैं हीं। उपनिवेशवाद ने कुछ तोड़-मरोड़ की पर कई नई अवधारणाएं भी आई। हमारे नजदीकी पूर्वजों ने स्वदेशी और स्वराज के सहारे नवनिर्माण का प्रयत्न किया। अनेकों मुशिकलें आई, बहुत विचार-मंथन हुआ, खंडन-विखंडन भी हुआ और हमने वर्तमान तक का सफर तय किया। हमारी कई परेशानियों का मूल हमारी सांस्कृतिक विरासत में तो है ही पर इनका समाधान भी इसी विरासत और नजदीकी इसिहास में है। इसका संतुलन कितना बना और कितना समयोचित बना, यह तो सुधी पाठक ही बता सकेंगे। अलबत्ता ये बोझिल न हों, इसके लिए बोलचाल की भाषा और थोड़े-परिहास का सहारा लिया गया है। आशा है, आप इसे पसंद करेंगे।