Satya Sodhak

50170823122041

Jana Natya Manch, New Delhi , 2011

Language: Hindi

64 pages

Price INR 50.00
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सोचिए विचारक के रूप में सावरकर को फुले से अधिक जाना जाता है । मेरा सोचना है कि अब वक्त आ गया है कि उपेक्षा की इन ग़लतियों को दुरुस्त किया जाए । मैं कोई अध्येता नहीं हूं । शायद इसलिए मैंने ये सोचा कि अपनी क्षमता के अनुरूप परिस्थिति को सुधारने के लिए कुछ करूं । किंतु नेक इरादे अक्सर इरादे ही रह जाते हैं । शायद इस मामले में भी ऐसा ही होता । किंतु एक मौका मेरे हाथ तब लगा जब श्याम बेनेगल ने टेलीविज़न के धारावाहिक ' डिस्कवरी ऑफ इंडिया ' के लिए फुले पर एक एपिसोड लिखने के लिए मुझे कहा । मैंने वो किया । इस प्रक्रिया में मेरे पास फुले पर बहुत सी सामग्री इकट्ठा हो गई । जो ये मांग कर रही थी कि इसका विस्तार से इस्तेमाल हो । 

G.P. Deshpande

G.P. Deshpande (1938-2013) retired as Professor of Chinese Studies at the School of International Studies, Jawaharlal Nehru University, New Delhi. He is the author of The World of Ideas in Modern Marathi: Phule, Vinoba, Savarkar (Tulika, 2009), Talking the Political Culturally and Other Essays (Thema 2009) and Dialectics of Defeat: The Problems of Culture in Postcolonial India (Seagull 2006). He is also a playwright and critic in Marathi. His best-known plays include Uddhwasta Dharmashala (A Man in Dark Times), Andhar Yatra (Passage to Darkness), Chanakya Vishnugupta, Raaste (Roads), and Satyashodhak, a play on the life and times of Jotirao Phule.