आरएसएस और बहुजन चिंतन
कँवल भारती ने आरएसएस के झूठ का पर्दाफाश करने के लिए अपने तर्कों को कुशलतापूर्वक प्रस्तुत करते हुए साबित किया है कि आरएसएस कितना दलित-विरोधी और आंबेडकर-विरोधी है। इस पुस्तक की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह आमजन के साथ संवाद करती है। मुझे उम्मीद है कि इस पुस्तक को पढ़ने के बाद ऐसा कोई दलित नहीं होगा, जो आरएसएस और संघ परिवार की दलित-विरोधी और बड़े पैमाने पर जन-विरोधी छवि को पहचानने से इनकार करेगा।
प्रस्तुत पुस्तक में मुख्य रूप से दलित-बहुजनों के बीच राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) द्वारा वितरित आठ पुस्तकों पर उनके विचार शामिल हैं, जिनके अक्सर सीधे-सादे दलित शिकार हो जाते हैं। अब यह महज़ एक परिकल्पना नहीं रह गई है; यह पहले भी हुआ है और कुछ वर्षों से होता आ रहा है। 2014 के चुनाव से पहले दलितों को भरमाने की यह प्रक्रिया खतरनाक स्तर तक पहुंच गई थी। ज़्यादातर दलित नेता निर्लज्ज होकर भाजपा से जा मिले या आंबेडकर का नाम जपते हुए उस दल में शामिल हो गए। –आनंद तेलतुंबड़े, प्रोफेसर, गोवा इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट