Rakta Kalyan

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सुविख्यात रंगकर्मी और कन्नड़ लेखक गिरीश कारनाड की यह नाट्यकृति एक ऐतिहासिक घटना पर आधारित है | बसवणा नाम का एक कवि और समाज-स्धारक इसका केन्द्रीय चरित्र है | ईस्वी सन 1106-1168 के बीच मौजूद बसवणा को एक अल्पजीवी 'वीरशैव संप्रदाय' का जनक माना जाता है | लेकिन बसवणा के जीवन-मूल्यों, कार्यों और उसके द्वारा रचित पदों की जितनी प्रासंगिकता तब रही होगी, उससे कम आज भी नहीं है, बल्कि अधिक है; और इसी से गिरीश कारनाड जैसे सजग लेखक की इतिहास-दृष्टि और उनके लेखन के महत्त्व को समझा जा सकता है | बसवणा के जीवन-मूल्य हैं--सामाजिक असमानता का विरोध, धर्म-जाति, लिंग-भेद आदि से जुडी रुढियों का त्याग, और ईश्वर-भक्ति के रूप में अपने-अपने 'कायक' यानी कर्म का निर्वाह | आकस्मिक नहीं कि उसके जीवनादर्शो में यदि गीता के कर्मवाद की अनुगूँज है तो परवर्ती कबीर भी सुनाई पड़ते हैं | लेकिन राजा का भंडारी और उसके निकट होने के बावजूद रूढ़िवादी ब्राह्मणों अथवा वर्णाश्रम धर्म के पक्ष में खड़ी राजसत्ता की भयावह हिंसा से अपने 'शरणाओं' की रक्षा वह नहीं कर पाता और न उन्हें प्रतिहिंसा से ही रोक पाता है | लेखक के इस समूचे घटनाक्रम को--बासवणा के जीवन से जुड़े तमाम अत्कर्य लोकविश्वासों को झटकते हुए-एक सांस्कृतिक जनांदोलन की तरह रचा है | विचार के साथ साथ एक गहरी संवेदनशील छुअन और अनेक दृश्यबंधो में समायोजित सुगठित नात्याशिल्प | जाहिर है कि इस सबका श्रेय जितना लेखक को है, उतना ही अनुवादक को है | अतीत के कुहासे से वर्तमान की वर्क्संगत तलाश और उसकी एक नई भाषिक सर्जना-हिंदी रंगमंच के लिए ये दोनों ही चीजें सामान रूप से महत्त्वपूर्ण हैं |

GIRISH KARNAD

1938, माथेरान, महाराष्ट्र में जन्मे गिरीश कारनाड की मातृभाषा कन्नड़ है। गणित की सर्वोच्च परीक्षा में सफल होकर ‘रोड्स स्कॉलर’ के रूप में ऑक्सफ़ोर्ड गए।

1963 में ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस, मद्रास में नौकरी। 1970 में ‘भाषा फ़ेलोशिप’, नौकरी से त्याग-पत्र और स्वतंत्र लेखन की शुरुआत। 1979 में पूना के फ़िल्म-संस्थान में प्रधानाचार्य, त्याग-पत्र और इस नए सशक्त अभिव्यक्ति-माध्यम के प्रति दिलचस्पी। 1988 से 1993 तक संगीत नाटक अकादेमी, नई दिल्ली के अध्यक्ष भी रहे।

पहला नाटक ‘ययाति’ 1968 में छपा और चर्चा का विषय बना। ‘तुग़लक’ के लेखन-प्रकाशन और बहुभाषी अनुवादों-प्रदर्शनों से राष्ट्रीय स्तर के नाटककार के रूप में प्रतिष्ठा। 1971 में ‘हयवदन’ का प्रकाशन, अभिमंचन। 2015 में ‘बलि’; 2017 में ‘शादी का एलबम’,

‘बिखरे बिम्ब और पुष्प’; 2018 में ‘टीपू सुल्तान के ख़्वाब’ का प्रकाशन।

‘संस्कार’, ‘वंशवृक्ष’, ‘काड़ू’, ‘अंकुर’, ‘निशान्त’, ‘स्वामी’ और ‘गोधूलि’ जैसी राष्ट्रीय-अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर पुरस्कृत एवं प्रशंसित फ़िल्मों में अभिनय-निर्देशन। ‘मृच्छकटिक’ पर आधारित फ़िल्मालेख, ‘उत्सव’ के लेखक-निर्देशक तथा एक लोकप्रिय दूरदर्शन धारावाहिक के महत्त्वपूर्ण अभिनेता के रूप में बहुचर्चित।

सम्मान : ‘तुग़लक’ के लिए संगीत नाटक अकादेमी पुरस्कार, ‘हयवदन’ के लिए कमलादेवी चट्टोपाध्याय पुरस्कार, ‘रक्त कल्याण’ के लिए साहित्य अकादेमी पुरस्कार तथा साहित्य में समग्र योगदान के लिए

ज्ञानपीठ पुरस्कार।

निधन: 10 जून, 2019