रात से रात तक
पंजाबी के सुप्रसिद्ध लेखक सुखबीर की चौबीस कहानियों का संकलन, स्वयं उनके द्वारा किए गए हिंदी अनुवाद में.
सुखबीर — एक पोर्ट्रेट
घड़ी थी शायरी की हाथ में
चलता था जब, आवाज़ होती थी
गुरु था, शख़सियत में माहिरे-फ़न गूंजता था
सिखाता था —
न समझो गर तो चुप रहकर ज़रा सा मुस्कराता था
घड़ी आवाज़ करती थी
स्याही की महक थी उसके बोलों में
क़लम की टहनी से वो आसमां को पेंट करता था
क़दम रखता था जब तो उसके पैरों की धमक से
किताबें खुलने लगती थीं
न जाने किस तरफ़ निकला है वो अपनी क़लम लेकर
किताबें फड़फड़ाती हैं
घड़ी के बजने की आवाज़ आती है
— गुलज़ार