9789392017674
Vaam Prakashan 2024
Language: Hindi
145 Pages
5.5 x 8.5 Inches
Price INR 225.0 Price USD 16.0
भारत में वंचित तबक़े के लिए औपचारिक स्कूली शिक्षा की शुरुआत फुले दंपति (सावित्रीबाई फुले और ज्योतिबा फुले) ने की थी। उन्होंने अत्यंत विपरीत परिस्थितियों के बीच पहले ख़ुद शिक्षा अर्जित की और उसके बाद एक ऐसा शिक्षा अभियान शुरू किया जिसमें उत्पीड़ित जातियों के अलावा सभी समुदायों के बच्चे, युवा, प्रौढ़, स्त्रियां, किसान और मज़दूर शामिल हो गए।
यह किताब उस भयावह दौर का एक चित्र खींचती है जब किसी स्त्री के लिए शिक्षा पाना असंभव था। लेकिन सावित्रीबाई ने तमाम विघ्न-बाधाओं से लड़ते हुए न केवल स्वयं शिक्षा हासिल की बल्कि अध्यापिका बनकर इसकी रोशनी समाज में भी फैलाई। यह किताब उनके क़दम-दर-क़दम आगे बढ़ने की कहानी कहती है।
सावित्रीबाई अच्छी तरह समझती थीं कि शिक्षा का प्रसार तभी संभव है जब समाज में व्यापक रूप से जागरूकता आए। इस किताब में समाज सुधार की उनकी कोशिशों की विस्तार से चर्चा की गई है। अध्यापिका, समाजसेविका के अलावा वह एक लेखिका भी थीं। इसमें उनके लेखन की विशिष्टताओं पर भी प्रकाश डाला गया है।