प्रतिनिधि कहानियां : प्रेमचंद

9788126705245

Rajkamal Prakashan,

Language: Hindi

139 pages

Price INR 99.00
Book Club Price INR 84.00
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LWB1514

भारतीय ग्रामीण जीवन और जनमानस की विभिन्न स्थितियों के अप्रतिम चितेरे मुंशी प्रेमचन्द विश्वविख्यात साहित्यकारों की पंक्ति में आते हैं। उनकी ये प्रतिनिधि कहानियाँ प्रायः पूरी दुनिया की पाठकीय चेतना का हिस्सा बन चुकी हैं। सुप्रसिद्ध प्रगतिशील कथाकार भीष्म साहनी द्वारा चयनित ये कहानियाँ भारतीय समाज और उसके स्वभाव के जिन विभिन्न मसलों को उठाती हैं, ‘आज़ादी’ के बावजूद वे आज और भी विकराल हो उठे हैं, और जैसा कि भीष्म जी ने संकलन की भूमिका में कहा है कि प्रेमचन्द की मृत्यु के पचास साल बाद आज उनका साहित्य हमारे लिए एक चेतावनी के रूप में उपस्थित है। जिन विषमताओं से प्रेमचन्द अपने साहित्य में जूझते रहे, उनमें से केवल ब्रिटिश शासन हमारे बीच मौजूद नहीं है, शेष सब तो किसी-न-किसी रूप में वैसी-की-वैसी मौजूद हैं! वस्तुतः प्रेमचन्द ने हमारे साहित्य में जिस नए युग का सूत्रपात किया था, साहित्य को वे जिस तरह जीवन के निकट अथवा जीवन को साहित्य के केन्द्र में ले आए थे, वह हमारे लिए आज भी प्रासंगिक है।

Premchand

प्रेमचंद (31 जुलाई 1880–8 अक्टूबर 1936) हिंदी-उर्दू के सर्वाधिक लोकप्रिय कहानीकार, उपन्यासकार और विचारक थे। उन्होंने सेवासदन, प्रेमाश्रम, रंगभूमि, निर्मला, ग़बन, कर्मभूमि, गोदान आदि लगभग डेढ़ दर्जन उपन्यास तथा पूस की रात, कफ़न, ठाकुर का कुआँ, पंच परमेश्वर और बड़े घर की बेटी जैसी क़रीब तीन सौ कहानियाँ लिखीं। उनके तीन नाटक हैं – कर्बला, संग्राम और प्रेम की वेदी। उन्होंने अपने समय की प्रमुख पत्रिकाओं में सामाजिक-राजनीतिक और आर्थिक विषयों पर अनेक लेख लिखे और हिंदी समाचार पत्र जागरण तथा साहित्यिक पत्रिका हंस का संपादन-प्रकाशन किया।