Prachin Bharat

प्राचीन भारत: सामाजिक, आर्थिक, और सांस्कृतिक विकास की पड़ताल

D.N. Jha

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प्रस्तुत पुस्तक मूलतः छात्रों की जरुरत का ध्यान में रख कर लिखी गयी है! इस पुस्तक में प्राचीन भारत के अंतिम दौर और मध्यकालीन भारत का आरम्भिक चरण के सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक विकास की पड़ताल की गयी है! इस क्रम में भौतिक विकास को केंद्र में रख कर उपलप्ब्ध नवीनतम साक्ष्यों के आधार पर राज्यों के आविर्भाव और उनके विकास के विविध कारकों पर प्रकाश डाला गया है! सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक विकास के परिवर्तनोन्मुख और यथास्थितवादी तत्त्वों पर विशेष ध्यान दिया गया है! इसमें आर्थिक शोषण के उन बदलते रूपों का भी विश्लेषण किया गया है, जिनके चलते समाज में अनेक प्रकार के तनाव जन्म लेते हैं! पुस्तक उपनिवेशवादी और सांप्रदायिक दृष्टि वाले इतिहास लेखन के अनेक मिथकों को भी तोड़ती hai!

पश्चिमी इतिहासकारों का एक दल इस बात को प्रचारिक करता रहा है की प्राचीन काल से ही भारतीय समाज स्थिर और अपरिवर्तनीय रहा है! इस दृष्टिकोण का प्रचार ब्रिटिश साम्राज्य की नीव को पुख्ता करने के लिए किया गया था! परोक्ष रूप से आज भी कुछ भारतीय इतिहासकार किसी न किसी रूप में इस विचार को आगे बढ़ाने में लगे है! इस पुस्तक मई दलील देकर इन कुप्रचारकों का खंडन किया गया है! पुस्तक छात्रों के साथ अध्यापकों को भी अपने अतीत को वैज्ञानिक ढंग से देखने की दृष्टि देती है!

D.N. Jha

Dwijendra Narayan Jha (1940-2021), popularly known as D.N. Jha, was educated at the Presidency College, Calcutta, and Patna University where he taught history for more than a decade. He was professor of History at the University of Delhi until his retirement in 2005. He has authored several books including The Myth of the Holy Cow (London, 2002) and Rethinking Hindu Identity (London,2009) which have not gone well with India’s Right Wing establishment. Professor Jha was elected sectional President of Andhra Pradesh History Congress (1987) and General President, Punjab History Conference (1999). A UGC National lecturer (1984-5) and Honorary Research Fellow, Indian Institute of Advanced Study, Shimla, he was secretary, Indian History Cogress (1986-9) which elected him its General President in 2005-6. A recipient of the prestigious H.K. Barpujari Award in 1995, he was honoured by the Asiatic Society of Calcutta in 2011 for his significant contributions. (2004).