India's Long Walk Home

978-93-87280-87-8

AuthorsUpFront, Noida, 2021

Language: English

231 pages

Price INR 595.00
Book Club Price INR 446.00
INR 595.00
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LWB947

This book is a mirror of our times. It raises questions, shatters assumptions and provides an unbiased view of the challenges we as a diverse country are facing today.

India’s Long Walk Home is a one-of-a-kind anthology that presents a unique assortment of fiction, non-fiction and poetry from some of our most perceptive writers and thinkers, as well as ordinary people.

Overshadowed by disease, death and poverty, we have all become pilgrims, struggling along different paths to arrive at the same realization that we’re not alone, that there may be others less fortunate than us, with whom we can share a lot. This book is a result of a quiet struggle against the gradual evaporation of India’s liberal ethos, its cultural multiplicity and generosity of soul.
– MRINAL PANDE (Author and Senior Editor)

Put together with love and empathy, this book – which contains writings by established and new writers – is a precious gift, a reminder, in these dark times, that there is always hope and in that hope, there is always beauty.
– URVASHI BUTALIA (Writer, Publisher and Activist)

Ashok Vajpeyi

समादृत कवि-आलोचक, संपादक और संस्कृतिकर्मी अशोक वाजपेयी का जन्म 16 जनवरी 1941 को तत्कालीन मध्य प्रदेश राज्य के दुर्ग में एक संपन्न सुशिक्षित परिवार में हुआ। उनके प्रशासनिक जीवन का एक लंबा समय मध्य प्रदेश, विशेषकर भोपाल में बीता जहाँ उन्होंने राज्य के संस्कृति सचिव के रूप में भी सेवा दी और कार्यकाल के अंतिम दौर में भारत सरकार के संस्कृति विभाग के संयुक्त सचिव के रूप में दिल्ली में कार्य किया। उन्होंने महात्मा गाँधी अंतर्राष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा के प्रथम उप-कुलपति और ललित कला अकादेमी के अध्यक्ष के रूप में भी कार्य किया।

अशोक वाजपेयी एक संस्कृतिकर्मी और आयोजक के रूप में भी विशिष्ट उपस्थिति रखते हैं। भोपाल में उनके प्रशासनिक कार्यकाल के दिनों में उनके द्वारा हज़ार से अधिक आयोजन कराए गए जो साहित्य और कला की विभिन्न विधाओं के प्रसार में अद्वितीय योगदान कहा जाता है। उस दौर में ‘भारत-भवन’ जैसे साहित्य-कला-संस्कृति आयोजन का पर्याय ही हो गया था। बाद के दिनों में रज़ा फ़ाउंडेशन एवं अन्य संस्थाओं के माध्यम से दिल्ली में भी उनकी सांस्कृतिक गतिविधियाँ बनी रही हैं।