ग़ालिब छुटी शराब
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पेड़ नशे में झूमने लगा और बियर की ख़ाली बोतलें मुंह चिढ़ा रही थीं। रवींद्र कालिया की यह हालत तब हुई जब वह लेखक जगदीश चतुर्वेदी के साथ बियर पी रहे थे। संस्मरण 'ग़ालिब छुटी शराब' में रवींद्र कालिया इसका उल्लेख करते हुए लिखते हैं कि वास्तव में शराब और कै़ (वॉमिटिंग) का चोली दामन का साथ है। कै़ के अनेक रूप होते हैं। चाहते या न चाहते हुए भी पीने वालों को अनायास ही उसका दीदार हो जाता है। सबसे खूबसूरत कै़ वह जो 'स्पांटेनियस ओवरफ्लो' की तरह निःसृत होती है। इसे स्वतःस्फूर्त कै़ की संज्ञा दी जा सकती है।