दीवान-ए-ग़ालिब
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ग़ालिब की महानता केवल इसमें नहीं है कि उसने अपने युग की आन्तरिक व्याकुलता को समेट लिया बल्कि इसमें कि उसने नई व्याकुलता पैदा की। उसकी शा'अिरी अपने युग के बन्धनों को तोड़ देती है और भूत और भविष्य के विस्तार में फैल जाती है। ग़ालिब ने अपने हर अनुभव को जो एक अत्यन्त मृदुल सौन्दर्यबोध रखनेवाले मस्तिष्क की प्रक्रिया थी, मानवी मनोविज्ञान की आग में तपाकर पिघलाया है, व्यापक नियम की कसौटियों पर कसा है और फिर काव्य के रूप में ढाला है। तब उसके यहाँ एक विश्व कवि का स्वर पैदा हुआ है और वह जीवन के हर क्षण का कवि बन गया है।