दलित पैंथर
एक आधिकारिक इतिहास
ज. वि. पवार की ‘आत्मकथा’ में ऐसा क्या है जो इसे “दलित पैंथर का आधिकारिक इतिहास” बनाता है? पहला, वे आंदोलन के दो संस्थापकों में से एक हैं, जिन्होंने इस नए समूह को वह नाम दिया जो आज प्रसिद्ध हो चुका है। संगठन का महासचिव होने के नाते उन्होंने सम्बंधित समस्त पत्राचार एवं दस्तावेजों को सहेजकर रखा है। इसके अलावा, उन्होंने इस पुस्तक में महाराष्ट्र सरकार के अभिलेखागार में उपलब्ध दलित पैंथर की गतिविधियों से सम्बंधित पुलिस और खुफिया रिपोर्टों का भरपूर इस्तेमाल किया है। यह ‘डॉ. आंबेडकर के बाद आंबेडकरवादी आंदोलन’ पर उनकी पुस्तक श्रृंखला की चौथी पुस्तक है। वे मानते हैं कि “दलित पैंथर्स का काल, आंबेडकर के बाद के दलित आंदोलन का स्वर्णकाल था”। पवार का मानना है कि “इस आंदोलन के साथ मेरे जुड़ाव का दौर मेरे जीवन का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण कालखंड था और इसीलिए मैंने अपनी कहानी की बजाय दलित पैंथर आंदोलन की आत्मकथा लिखने को प्राथमिकता दी।” पवार जिसे विनम्रता के साथ पैंथर्स का संक्षिप्त इतिहास कहते हैं, वह वास्तव में आंबेडकर के अवसान के बाद के महाराष्ट्र में दलित समुदाय के परिप्रेक्ष्य से इस संगठन और उसकी गतिविधियों को प्रस्तुत करता है - विशेषकर दलितों से सम्बंधित सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक और मनोवैज्ञानिक मुद्दों और चुनौतियों के सन्दर्भ में। इस पुस्तक में एक उपन्यासकार (बलिदान का लेखक) का सृजनात्मक शिल्प शुष्क ऐतिहासिक तथ्यों के अनगढ़ कंकाल को कलात्मक रूप में प्रस्तुत करने में कामयाब रहा है। भारत के आधुनिक इतिहास, और विशेषकर सबाल्टर्न दलित आंदोलनों, के अध्येताओं के लिए यह उपयोगी पुस्तक है। बहुजन कार्यकर्ता इससे बहुत कुछ सीख सकते हैं। इस पुस्तक के बिना कोई भी व्यक्तिगत या अकादमिक पुस्तकालय अधूरा होगा।