कोरोना में कवि
कोरोना वायरस ने हमारे जीवन में जिस तरह की उथल-पुथल मचाई है, उसे हिंदी के अनेक कवियों ने अपनी कविताओं में दर्ज किया है और लगातार कर रहे हैं। ये कविताएं न सिर्फ एक महामारी की भयावहता को चित्रित करती हैं बल्कि हमारी व्यवस्था की विसंगतियों को भी उजागर करती हैं। ये बताती हैं कि मनुष्यता पर आए किसी भी तरह के संकट की मार सबसे ज्यादा समाज के कमजोर वर्ग पर पड़ती है। ये कविताएं एक तरह से उस तबके की पीड़ा का आख्यान हैं। इस पुस्तिका में ऐसी ही कुछ कविताएं प्रस्तुत की गई हैं। इसकी भूमिका में विश्व भर की विभिन्न भाषाओं की प्रमुख कृतियों के बारे में बताया गया है जो अलग-अलग समय में फैली महामारियों पर लिखी गई हैं। इसमें प्रसिद्ध उपन्यासों की कहानी संक्षेप में बताई गई है कि किस तरह महामारी से लोग प्रभावित हुए, उन्होंने महामारी से लड़ने के लिए क्या उपाय किए। उनमें जो चिताएं हैं, बेचैनी हैं, जिन सवालों से टकराहट है, वे इस पुस्तिका में संकलित कविताओं में भी किसी न किसी रूप में मौजूद हैं।
संकलित कवि: फ़रीद ख़ान, हरि मृदुल, बोधिसत्व, सुभाष राय, निरंजन श्रोत्रिय, शिवदयाल, श्रीप्रकाश शुक्ल, संजय कुंदन, मदन कश्यप, विष्णु नागर, विजय कुमार, लीलाधर मंडलोई, नवल शुक्ल, सृष्टि श्रीवास्तव, देवी प्रसाद मिश्र