महामारी की सरहदें
कोविड-19 और प्रवासी श्रमिक
कोरोना वायरस के संक्रमण को रोकने के लिए भारत सरकार ने सम्पूर्ण लॉकडाउनका फ़ैसला लिया जिसका नतीजा यह हुआ कि देश के विभिन्न हिस्सों में रह रहे प्रवासीश्रमिक जल्द-से-जल्द अपने घर पहुँचने के लिए बेताब हो उठे। जितना भी सामान वे लेसकते थे उसे अपने सिर पर लादकर, अपने बच्चों और घर के बूढ़े सदस्यों को साथ लेकरभूखे-प्यासे तपती धूप की परवाह किए बगैर अपने घर के लिए पैदल ही रवाना हो गएक्योंकि परिवहन के सारे साधन बंद कर दिए गए और अलग-अलग राज्यों ने भी अपनीसीमाएँ सील कर दी थीं। इन सबके बीच लोगों के ज़ेहन में जो सवाल बार-बार उठ रहाथा, वह यह था कि वहाँ उनके काम के शहर या जिले में प्रवासी मजदूरों के लिए पर्याप्तभोजन, पानी और आश्रय की व्यवस्था की जाती तो क्या इस मानवजनित त्रासदी से बचाजा सकता था? प्रवासी श्रमिकों के नियोक्ताओं ने अपनी दुकानें बंद कर दीं। किराया नहींचुका पाने के अंदेशे से श्रमिकों को मकान-मालिकों ने मकान से निकाल दिया। उन्हें डरथा कि उनके पास जो भी बचत थी वह शीघ्र ही समाप्त हो गई। भूख से मर जाने के डरने इन श्रमिकों को सैकड़ों मील की ऐसी पैदल यात्रा पर चलने को बाध्य किया जिसकीउन्होंने सपने में भी कल्पना भी नहीं की थी। उन्हें पैदल चलने को इसलिए बाध्य होनापड़ा क्योंकि परिवहन के सारे साधनों को बंद कर दिया गया था। उनके एक तरफ़ कुआँथा, तो दूसरी तरफ़ खाई–एक ओर भूख से मर जाने की नौबत तो दूसरी ओर महामारीका डर। भारतीय उप-महाद्वीप में आज़ादी के बाद हुए बँटवारे के दौरान जिन लोगों काविस्थापन इसके मैदानी इलाक़े में हुआ संभवत: उसके बाद से ऐसा पलायन कभी नहींदेखा गया था, जब लोग बिना खाए, बिना सोए और ठहरने की कोई जगह के बिना निरंतरपैदल चलते रहे।हाइवे पर पैदल जा रहे प्रवासी श्रमिकों के हुजूम के दृश्य को पत्रकारों के कैमरों नेक़ैद किया। यह प्रश्न पूछना बेहद ज़रूरी है कि : इन लंबी यात्राओं के क्या कारण थे?किसी वायरस के कारण फैलने वाली महामारी से सरकारी लड़ाई की रणनीति जाति,नस्ल, जेंडर, और अन्य दरारों से किस तरह निपटती है? अगर महामारी के ख़िलाफ़अभियान की तुलना युद्ध से की गई है तो महामारी के ख़िलाफ़ इस युद्ध में सत्ता की किसतरह की ताक़तें लगी हुई हैं? सार्वजनिक स्वास्थ्य के संकट के इस दौर में अचानक प्रवासीश्रमिक कैसे सबको दिखाई देने लगे?भारत पूरी तरह लॉकडाउन में है। कोलकाता रिसर्च ग्रुप का यह ऑनलाइनप्रकाशन—पत्रकारों, सामाजिक वैज्ञानिकों, सामाजिक कार्यकर्ताओं, क़ानून की प्रैक्टिसकरने वालों और विचारकों के समकालीन ़ख्यालों का प्रस्तुतीकरण है जिनमें भारत मेंमहामारी के नैतिक और राजनीतिक परिणामों को रेखांकित किया गया है, विशेषकर, भारतके प्रवासी श्रमिकों के लिए। इस पुस्तक को उस समय लिखा गया जब यह संकट शुरूहुआ था और इसका अंत नज़र नहीं आ रहा था। यह उस समय का निबंध है।