Baqi Itihas

978-81-83618-86-1

Rajkamal Prakashan, New Delhi, 2018

Language: Hindi

79 pages

Price INR 95.00
Book Club Price INR 81.00
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LWB1110
एक इतिहास वह है जिसे राजा–महाराजा, शासक शक्तियाँ और मुख्यधारा के नायक बनाते हैं; इसके बरअक्स एक दूसरा इतिहास भी होता है । इस इतिहास में शामिल होते हैं वे तमाम बेचेहरा लोग जिनके कंधों से होकर नायकों के विजय–मत्त घोड़े अपने झंडे फहराते हैं । मसलन, सीतानाथ जो इस नाटक का ‘नायक–नहीं’ है । वह इतिहास के पिछवाड़े पड़े लाखों औसत जनों की तरह का ही एक शख़्स है, जिनका नाम कहीं दर्ज नहीं होता । लेकिन सीतानाथ इसी व्यर्थता–बोध के चलते आत्महत्या करता है और एक स्थानीय अख़बार में एक–कॉलमी खबर बनकर उभरता है । शरद जो खुद भी ‘नायक नहीं’ है, अपनी लेखिका पत्नी वासन्ती के साथ मिलकर उस आत्महत्या पर एक कहानी गढ़ने की कोशिश करता है, लेकिन असफल होता है, और अन्त में पाता है कि वह भी सीतानाथ की ही तरह बाकी इतिहास का एक अर्द्ध– नायक भर है जिसके सामने न जीने की वजह मौजूद है, न मरने की । मध्यवर्ग की इसी उबाऊ और दमघोंटू दैनिकता का विश्लेषण बाकी इतिहास अपने बहुस्तरीय शिल्प के माध्यम से करता है । देश के कोने–कोने में सैकड़ों बार सफलतापूर्वक मंचित हो चुके इस नाटक का विषय आज भी उतना ही प्रासंगिक है, जितना तीन दशक पहले था ।

Badal Sircar

Badal Sircar (15 July 1925 – 13 May 2011), also known as Badal Sarkar, was an influential Indian dramatist and theatre director, most known for his anti-establishment plays during the Naxalite movement in the 1970s and taking theatre out of the proscenium and into public arena, when he founded his own theatre company, Shatabdi in 1976. He wrote more than fifty plays of which Ebong Indrajit, Basi Khabar, and Saari Raat are well known literary pieces, a pioneering figure in street theatre as well as in experimental and contemporary Bengali theatre with his egalitarian"Third Theatre", he prolifically wrote scripts for his Aanganmanch (courtyard stage) performances, and remains one of the most translated Indian playwrights.[Though his early comedies were popular, it was his angst-ridden Ebong Indrajit (And Indrajit) that became a landmark play in Indian theatre.Today, his rise as a prominent playwright in 1960s is seen as the coming of age of Modern Indian playwriting in Bengali, just as Vijay Tendulkar did it in Marathi, Mohan Rakesh in Hindi, and Girish Karnad in Kannada. He was awarded the Padma Shri in 1972, Sangeet Natak Akademi Award in 1968 and the Sangeet Natak Akademi Fellowship- Ratna Sadsya, the highest honour in the performing arts by Govt. of India, in 1997.