किसका संविधान, किसका देश?

978-81-944759-2-7

वाम प्रकाशन, New Delhi, 2020

Language: Hindi

130 pages

5 X 7.5 inches

Price INR 100.00

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जब तक आवाज़ बची है, तब तक उम्मीद भी बची है। इस श्रृंखला की अलग-अलग कड़ियों में आप अपने समय के ज्वलंत प्रश्नों पर लेखकों-कलाकारों-कार्यकर्ताओं की बेबाक टिप्पणियां पढ़ेंगे।

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जिस समय नागरिकता संशोधन क़ानून और राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर का विरोध पूरे देश में जारी है, तमाम पक्ष-विपक्ष इसी प्रश्न से तय हो रहे हैं कि भारतीय संविधान के लिए भारत का तसव्वुर क्या रहा है। एक लम्बी उपनिवेशवाद-विरोधी लड़ाई के मूल्यों को सँजोने वाला हमारा संविधान हिंदू महासभाई और मुस्लिम लीगी संकीर्णता को नकार कर ही वजूद में आया था। वह धर्म, जाति, लिंग, प्रांत, भाषा आदि के आधार पर देश के नागरिकों में भेद नहीं करता। उसकी निगाह में किसी की दावेदारी कम या ज़्यादा नहीं है। कहने की ज़रूरत नहीं कि भारत की ऐसी संवैधानिक संकल्पना को दरकिनार करने की कोशिशें जब-तब तेज़ होती रही हैं, और जब-जब ऐसा हुआ है, इस संकल्पना को पुनर्नवा करने वाला वैचारिक उद्यम भी तेज़ हुआ है। यह किताबचा उसी की एक बानगी है।

लेखक : जस्टिस अजीत प्रकाश शाह  | रोमिला थापर | प्रभात पटनायक | प्रबीर पुरकायस्थ | रोहित डे
इंदिरा जयसिंह | उषा रामनाथन | सुबोध वर्मा

Justice Ajit Prakash Shah

Ajit Prakash Shah (b. 13 February 1948) is former Chief Justice of the Delhi High Court, and former chairperson of the 20th Law Commission of India.

Pranjal

Pranjal is a journalist and activist who works with Newsclick. He has been associated with the student movement for a long time.


Sanjeev Kumar

Sanjeev Kumar is an Associate Professor at Deshbandhu College, Delhi University. He is a critic and story writer.


Shipra Kiran

Shipra Kiran is an Editor at Vaam Prakashan.