लोकतंत्र की मॉब लिंचिंग
जब तक आवाज़ बची है, तब तक उम्मीद भी बची है। इस श्रृंखला की अलग-अलग कड़ियों में आप अपने समय के ज्वलंत प्रश्नों पर लेखकों-कलाकारों-कार्यकर्ताओं की बेबाक टिप्पणियां पढ़ेंगे।
इस दशक में गाय के नाम पर भीड़ की कातिलाना हिंसा के जितने वारदात हुए, उनका 98 फ़ीसद 2014 के बाद भाजपा के निज़ाम में घटित हुआ है। आरएसएस के सरसंघचालक का मानना है कि लिंचिंग हमारी संस्कृति का हिस्सा नहीं है और हिंदू एक निहायत अहिंसक समुदाय है। लिंचिंग की घटनाएँ न सिर्फ़ इससे उलट सच बयान करती हैं बल्कि यह भी बताती हैं कि इन्हें अंजाम देने वालों को हमारे देश का यह कुख्यात ‘सांस्कृतिक’ संगठन कैसे प्रेरणा, प्रोत्साहन, प्रशिक्षण और सुरक्षा प्रदान करता है। हिंदुत्ववादी गिरोह भीड़ की शक्ल में जो कांड कर रहे हैं, वह सिर्फ़ क़ानून और व्यवस्था पर नहीं, लोकतंत्र पर भी हमला है। यह लोकतंत्र की मॉब लिंचिंग है।
लेखक : बेजवाड़ा विल्सन | प्रबीर पुरकायस्थ | हर्ष मंदर | राम पुनियानी
विकास रावल | पीयूष शर्मा | हरीश दामोदरन | अहमर अफ़ाक
पारस नाथ सिंह | अजय गुडावर्थी | मोहसिन आलम भट