जाति से जंग

978-81-940778-8-6

वाम प्रकाशन, New Delhi, 2019

Language: Hindi

82 pages

5 x 7.5 inches

Price INR 100.00
Book Club Price INR 70.00

जब तक आवाज़ बची है, तब तक उम्मीद बची है इस श्रृंखला की अलग-अलग कड़ियों में आप अपने समय के ज्वलंत प्रश्नों पर लेखकों-कलाकारों-कार्यकर्ताओं की बेबाक टिप्पणियाँ पढ़ेंगे

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राज्य और उसके क़ानून की निगाह में सभी नागरिकों की समानता का आदर्श स्थापित करने वाला भारतीय संविधान अपने अमल के सत्तर साल पूरे करने जा रहा है, लेकिन जन्म के आधार पर सामाजिक दर्जा तय करने वाली जाति-व्यवस्था की जकड़बंदी न सिर्फ़ बदस्तूर है बल्कि पिछले कुछ वर्षों में अधिक आक्रामक हुई है। ऐसा क्यों है? इसे ताक़त कहाँ से मिलती है? इसका निदान क्या है? इन सवालों पर लागातर सोचने की ज़रुरत है, ख़ास तौर से तब जबकि केंद्र समेत भारत के अनेक राज्यों की सत्ता उनके हाथों में है जो विचारधारात्मक स्तर पर भारतीय संविधान के मुक़ाबले मनुस्मृति के ज़्यादा क़रीब हैं।

लेखक : उर्मिलेश | सुभाष गाताडे | बादल सरोज | सुबोध वर्मा |
आनंद तेलतुम्बड़े | सोनाली | प्रबीर पुरकायस्थ | भाषा सिंह |
बेज़वाड़ा विल्सन | चिन्नैया जंगम | अनिल चमड़िया | जिग्नेश मेवाणी | संभाजी भगत

Pranjal

Pranjal is a journalist and activist who works with Newsclick. He has been associated with the student movement for a long time.


Sanjeev Kumar

Sanjeev Kumar is an Associate Professor at Deshbandhu College, Delhi University. He is a critic and story writer.


Shipra Kiran

Shipra Kiran is an Editor at Vaam Prakashan.


Urmilesh

Urmilesh is a journalist and author. His published works in Hindi include Jharkhand: Jadui Zameen Ka Andhera, Bihar Ka Sach, and Kashmir: Virasat aur Siyasat.