मैं कम्युनिस्ट कैसे बना
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मैं कम्युनिस्ट कैसे बना
ई.एम.एस. नंबूदिरिपाद, जिन्हें सिर्फ स्वतंत्र भारत की पहली विपक्षी सरकार का ही नहीं, दुनिया भर में चुनाव के जरिए बनी पहली कम्युनिस्ट सरकार का भी नेतृत्व करने का गौरव हासिल हुआ था, हमारे देश के स्वतन्त्रता आंदोलन और कम्युनिस्ट आंदोलन के भी शीर्ष नेताओं में से थे और अपनी पीढ़ी के दूसरे कई नेताओं की तरह वह भी अपनी भाषा, मलयालम के अग्रणी बुद्धजीवियों में ही नहीं, सबसे प्रभावशाली लेखकों में से भी थे। अचरज की बात नहीं है कि उनकी इस आत्मकथा के मूल मलयालम रूप को उसके साहित्यिक व शैलीगत योगदान के लिए, केरल साहित्य अकादमी ने सम्मानित भी किया था। इस पुस्तक में दक्षिणी मालाबार के एक परंपरावादी, जमींदार, वेदपाठी नंबूदिरी ब्राह्मण परिवार में जन्मे एक बच्चे से, मार्क्सवाद में गहरी निष्ठा रखने वाले एक समर्पित कम्युनिस्ट नेता तक के उनके विकास की संक्षिप्त कहानी है। यह जीवन वहीं पर समाप्त होती है, जहाँ गुणात्मक विकास की यह प्रक्रिया एक तरह से पूरी होती है। बेशक, यहाँ से आगे एक कम्युनिस्ट के रूप में उनका असाधारण, घटनापूर्ण और लंबा जीवन है, लेकिन वह एक भिन्न जीवन यात्रा है। अचरज नहीं कि यह आत्मकथा, उतनी ई.एम.एस. के निजी विकास की कथा नहीं है जितनी कि आमतौर पर केरल था तथा विशेष रूप से दक्षिणी मालाबार के परंपरागत समाज के जागरण की और इसके रास्ते से राष्ट्रीय आन्दोलन का अभिन्न हिस्सा बनने तक की यात्रा कथा है। राष्ट्रीय आंदोलन की हलचलों के संदर्भ में, नंबूदिरी समाज की परंपरा की बेड़ियों से मुक्ति की इस जीवन के पूर्वार्ध की कथा, सामाजिक जागरण/सुधार और राष्ट्रिय आंदोलन की पुकारों की पारंपारिकता तथा पूरकता को जिस गहराई से रेखांकित करती है, अपने आप में सामाजिक सांस्कृतिक इतिहास में एक महत्वपूर्ण योगदान है।