भगत सिंह और उनके साथी बचपन से हमारे नायक रहे हैं

भगत सिंह के साथी के लेखक प्रबल सरन अग्रवाल से बातचीत

इस किताब को लिखने का विचार कैसे आया?

भगत सिंह और उनके साथी बचपन से ही हम लोगों के नायक रहे हैं। इन्हीं लोगों की विचारधारा पर चलते हुए हम लोगों ने छात्र-राजनीतिमें हिस्सा लिया और इस विषय पर अनेक दुर्लभ पुस्तकों और ऐतिहासिक दस्तावेज़ों का अध्ययन किया। मेरी तो पीएचडी का भी विषय क्रांतिकारी आंदोलन ही रहा। ऐसी किताब मैं हमेशा से ही लिखना चाहता था क्योंकि मेरा मानना है कि भगत सिंह के साथी जैसे सुखदेव, चंद्रशेखर आज़ाद, शिव वर्मा आदि भी उन्हीं के स्तर के जीवट क्रांतिकारी थे लेकिन इतिहासकारों और आम जनता ने उन पर कम ही ध्यान दिया है। भारतीय क्रांतिकारी आंदोलन को समग्रता में समझने के लिए इन लोगों की कहानी दुनिया के सामने लाना हम लोगों को बेहद ज़रूरी लगा। साथ ही साथ इन क्रांतिकारियों का वैचारिक पक्ष भी प्रकाश में लाना अत्यावश्यक था।

इस किताब को लिखने के लिए आपने कुछ वरिष्ठों से सुझाव मांगे? क्या कोई ऐसा रोचक सुझाव भी आया जिससे आप चौंक गए हों?

इस किताब को लिखने से पहले ही मैं प्रो. चमनलाल और प्रसिद्ध क्रांतिकारी लेखक सुधीर विद्यार्थी जी के संपर्क में था। इन लोगों ने मुझे क्रांतिकारियों द्वारा लिखित अनेक दुर्लभ संस्मरणों से परिचित कराया जो अभी तक प्रकाश में नहीं आये हैं। नई दिल्ली स्थित भगत सिंह अभिलेखागार ऐसी ऐतिहासिक सामग्री जुटाने में विशेष उपयोगी रहा।

चूंकि आपने अपने दो मित्रों के साथ मिलकर इसे लिखा है। क्या कभी आपलोगों में कोई मतभेद भी सामने आया?

जी, हम लोगों में कई बार मतभेद हुआ। भगत सिंह के तमाम साथियों के जीवन के अनेक पहलुओं पर हम लोगों की लंबी-लंबी बहसें हुईं और कई मुद्दों पर असहमतियाँ भी ज़ाहिर हुईं। हम लोगों ने लगातार बहस करके और अपने स्रोतों का कई-कई बार विश्लेषण करके इन मुद्दों को सुलझाया। लिखने की समय-सीमा को लेकर भी थोड़ा मतभेद हुआ लेकिन अंततः सब ठीक रहा।

इस किताब पर अब तक की सबसे रोचक प्रतिक्रिया किसकी और क्या रही?

अब तक की सबसे रोचक प्रतिक्रिया भगत सिंह पर कई किताबें लिखने वाले प्रो. एस. इरफ़ान हबीब सर की रही। उन्होंने इसे एक बहुत ही सटीक और बेहद ज़रूरी किताब बताया। भगत सिंह के भांजे जगमोहन जी और प्रसिद्ध लेखक सुभाष कुशवाहा जी ने भी किताब की काफी सराहना की, जो हम लोगों के लिए बहुत प्रेरणादायक है।

आप वाम प्रकाशन के लिए और क्या लिखना चाहेंगे?

भारतीय क्रांतिकारी आंदोलन का संपूर्ण इतिहास 1900 से 1947 तक लिखने की मेरी बड़ी इच्छा है। भगत सिंह और उनके गुमनाम साथियों तथा अन्य क्रांतिकारियों पर भी लिखना चाहता हूँ। कम्युनिस्ट आंदोलन के इतिहास पर भी काम कर रहा हूँ।