आंबेडकर की नजर में गांधी और गांधीवाद
यह पुस्तक मेरे लिए इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि गांधी और आंबेडकर के बीच हुए वाद-विवाद का कोई प्रामाणिक दस्तावेज मेरे पास उपलब्ध नहीं था। इसके लिए फारवर्ड प्रेस का आभार तथा दोनों संपादकों– सिद्धार्थ व अलख निरंजन को हार्दिक बधाई! इसमें कई एक ऐसे जरूरी लेख हैं जो गांधी पर आंबेडकर के बेबाक विचारों को समझने के लिए जरूरी हैं। – चौथीराम यादव, प्रसिद्ध हिंदी समालोचक
डॉ. आंबेडकर भले ही गुमनामी के अंधेरे से कुछ बाहर निकल आए हों, परंतु आज भी उन्हें केवल दलितों का नेता माना जाता है। गांधी की यादें कुछ धुंधली तो हुईं हैं, परंतु महात्मा का मुकुट धारण करने को आतुर कई और लोग देश के क्षितिज पर उभर आए हैं। जितनी जल्दी हम यह समझेंगे कि गांधी के सिद्धांत और सोच क्या थी, जितनी जल्दी हम यह जानेंगे कि क्या कारण है कि हम अपने मिथकीय सुनहरे अतीत की ओर खींचे चले जाते हैं और क्यों हम लड़ने के लिए एक मिथकीय शत्रु की खोज में हैं, उतना ही हमारे लिए बेहतर होगा, क्योंकि तब हम एक गौरवशाली भविष्य की ओर कदम बढ़ा सकेंगे।