आंबेडकर की नजर में गांधी और गांधीवाद

978-8195463664

Forward Press,

Language: Hindi

Price INR 200.00
Book Club Price INR 160.00

यह पुस्तक मेरे लिए इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि गांधी और आंबेडकर के बीच हुए वाद-विवाद का कोई प्रामाणिक दस्तावेज मेरे पास उपलब्ध नहीं था। इसके लिए फारवर्ड प्रेस का आभार तथा दोनों संपादकों– सिद्धार्थ व अलख निरंजन को हार्दिक बधाई! इसमें कई एक ऐसे जरूरी लेख हैं जो गांधी पर आंबेडकर के बेबाक विचारों को समझने के लिए जरूरी हैं। – चौथीराम यादव, प्रसिद्ध हिंदी समालोचक

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डॉ. आंबेडकर भले ही गुमनामी के अंधेरे से कुछ बाहर निकल आए हों, परंतु आज भी उन्हें केवल दलितों का नेता माना जाता है। गांधी की यादें कुछ धुंधली तो हुईं हैं, परंतु महात्मा का मुकुट धारण करने को आतुर कई और लोग देश के क्षितिज पर उभर आए हैं। जितनी जल्दी हम यह समझेंगे कि गांधी के सिद्धांत और सोच क्या थी, जितनी जल्दी हम यह जानेंगे कि क्या कारण है कि हम अपने मिथकीय सुनहरे अतीत की ओर खींचे चले जाते हैं और क्यों हम लड़ने के लिए एक मिथकीय शत्रु की खोज में हैं, उतना ही हमारे लिए बेहतर होगा, क्योंकि तब हम एक गौरवशाली भविष्य की ओर कदम बढ़ा सकेंगे।

B.R. Ambedkar

Born into an ‘untouchable’ family, Bhimrao Ramji Ambedkar (1891-1956) was one of India’s most radical thinkers. A brilliant student, he earned doctorates in economics from both Columbia University, New York, and the London School of Economics. In 1936, the year he wrote Annihilation of Caste, Ambedkar founded the Independent Labour Party. The ILP contested the 1937 Bombay election to the Central Legislative Assembly for the 13 reserved and 4 general seats, and secured 11 and 3 seats respectively. He was India’s first Minister for Law and Justice, and oversaw the drafting of the Indian Constitution. Ambedkar eventually embraced Buddhism, a few months before his death in 1956.