आत्म खबर
पाठकों के सन्मुख कुछ आलेख है जो हमारी संस्कृति और समाज पर इतिहास और वर्तमान दोनों के परिपेक्ष्य में लिखे गए हैं! संस्कार की बात की गयी है और ज्ञान-विज्ञानं के परम्पराओं की, जो हमारे यहाँ विराट और सुदृढ़ हैं हीं! उपनिवेशवाद ने कुछ तोड़-मरोड़ की पर कई नई अवधारणाएं भी आई! हमारे नजदीकी पूर्वजों ने स्वदेसी और स्वराज के सहारे नवनिर्माण का प्रयत्न किया! अनेकों मुशिकलें आई, बहुत विचार-मंथन हुआ, खंडन-विखंडन भी हुआ और हमने वर्तमान तक का सफर तय किया! हमारी कई परेशानियों का मूल हमारी सांस्कृतिक विरासत में तो है ही पर इनका समाधान भी इसी विरासत और नजदीकी इसिहास में है! इसका संतुलन कितना बना और कितना समयोचित बना, यह तो सुधि पाठक ही बता सकेंगे! अलबत्ता ये बोझिल न हों, इसके लिए बोलचाल की भाषा और थोड़े-परिहास का सहारा लिया गया है! आशा है, आप इसे पसंद करेंगे!
दीपक कुमार इतिहास के विद्यार्थी रहे, और चार दशकों से ज्यादा अध्ययन-अध्यापन किया! कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय और सीएसआईआर-निस्टाड्स में काम करने के बाद जवाहरलाल नेहरू विश्विद्यालय से 2017 में सेवा-निवृत्त हुए! इनकी चर्चित किताबों में विज्ञानं और भारत में अंग्रज़ी राज (ग्रंथशिल्पी, 1998) और त्रिशंकु राष्ट्र: स्मृति, स्व और समकालीन भारत (राजकमल, 2018) शामिल हैं!