आज के सवाल, प्रेमचंद के जवाब

Premchand

Edited by Sanjay Kundan

Introduction by Sanjay Kundan

978-81-945925-5-6

वाम प्रकाशन, New Delhi, 2020

Language: Hindi

82 pages

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प्रेमचंद हिन्दी के सबसे ज्यादा पढ़े जाने वाले लेखक हैं। समय के साथ उनकी लोकप्रियता और प्रासंगिकता बढ़ती ही जा रही है।

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एक सजग और प्रतिबद्ध रचनाकार के रूप में प्रेमचंद न सिर्फ कहानियां और उपन्यास लिखे बल्कि सामाजिक-आर्थिक विषयों पर लगातार सोचते रहे और उन पर बेबाकी से अपने विचार व्यक्त किए। यह पुस्तिका उनके विचारक रूप को प्रस्तुत करती है। इसमें उनके सात लेख संकलित हैं जो संस्कृति, सांप्रदायिकता,  धर्म और स्वदेशी जैसे सवालों पर केंद्रित हैं। चूंकि इन मुद्दों पर आज नए सिरे से बहस हो रही है इसलिए इन लेखों का हमारे लिए विशेष महत्व है। इसमें आज के कई कठिन प्रश्नों के जवाब मिलते हैं और वैचारिक भटकाव से बाहर निकलने के सूत्र भी। इन्हें पढ़ते हुए पता चलता है कि प्रेमचंद के विचार कितने आधुनिक हैं। ऐसा लगता है जैसे वे आज हमारे बीच ही कहीं बैठकर यह सब लिख रहे हों। उनकी सबसे बड़ी खासियत यह है कि वे आमजन की भाषा में अपनी बात कहते हैं।

Premchand

प्रेमचंद (31 जुलाई 1880–8 अक्टूबर 1936) हिंदी-उर्दू के सर्वाधिक लोकप्रिय कहानीकार, उपन्यासकार और विचारक थे। उन्होंने सेवासदन, प्रेमाश्रम, रंगभूमि, निर्मला, ग़बन, कर्मभूमि, गोदान आदि लगभग डेढ़ दर्जन उपन्यास तथा पूस की रात, कफ़न, ठाकुर का कुआँ, पंच परमेश्वर और बड़े घर की बेटी जैसी क़रीब तीन सौ कहानियाँ लिखीं। उनके तीन नाटक हैं – कर्बला, संग्राम और प्रेम की वेदी। उन्होंने अपने समय की प्रमुख पत्रिकाओं में सामाजिक-राजनीतिक और आर्थिक विषयों पर अनेक लेख लिखे और हिंदी समाचार पत्र जागरण तथा साहित्यिक पत्रिका हंस का संपादन-प्रकाशन किया।


Sanjay Kundan

कागज के प्रदेश में, चुप्पी का शोर, योजनाओं का शहर और तनी हुई रस्सी पर संजय कुंदन के कविता संग्रह हैं। बॉस की पार्टी और श्यामलाल का अकेलापन उनके कहानी संग्रह हैं जबकि टूटने के बाद और तीन ताल उनके उपन्यास। उन्हें भारतभूषण अग्रवाल स्मृति पुरस्कार, विद्यापति पुरस्कार और बनारसी प्रसाद भोजपुरी पुरस्कार प्राप्त हुए हैं। उन्होंने जॉर्ज ऑरवेल की एनिमल फार्म, रिल्के की लेटर्स ऑन सेज़ां और विजय प्रशाद की वॉशिंगटन बुलेट्स का हिंदी में अनुवाद किया है।


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