बुद्धि और भावनाओं का मेल – पब्लिशिंग नेक्स्ट 2019

मैं पहली बार गोवा गई और मौक़ा था – पब्लिशिंग नेक्स्ट 2019 का।

किताबों की दुनिया से वाक़िफ़ तो थी पर किताब बनाने वालों, उन्हें गढ़ने वालों को एक साथ और इतने करीब से देखने का ये पहला मौक़ा था। अलग-अलग सेशंस में उनकी बातें जैसे हर बार किताबों और प्रकाशन की दुनिया की नई खिड़कियां खोल रही थीं मेरे लिए। उनकी कही हर बात, चाहे वो किताबों के संपादन से जुड़ी हो, डिज़ायन से या उनके ऐस्थेटिक्स से, मेरे लिए किसी खजाने से कम नहीं थी।

ये प्रकाशन की दुनिया के दिग्गज थे और जो ख़ुद को छोटे और स्वतंत्र (small and independent) प्रकाशक कह रहे थे, वो बेशक ऐसे प्रकाशक हैं, जिनकी दुनिया का विस्तार आसमान जितना है। ये सिर्फ़ बाज़ार की भागमभाग और उसकी गलाकाट प्रतिद्वंदिता के हिसाब से चलने वाले लोग नहीं हैं बल्कि इनके गहरे सरोकार हैं – सामाजिक सरोकार। ये सरोकार इसलिए क्योंकि इन्होंने संघर्षों पर अपनी ये दुनिया खड़ी की है, ये तमाम मुश्किलों से जूझकर एक खूबसूरत दुनिया बनाने का सपना देखने वाले लोग हैं। मेरे लिए ये सिर्फ़ एक कॉन्फ्रेंस या वर्कशॉप भर नहीं था बल्कि ताकत और ऊर्जा देने वाले लोग रहे जिन्होंने ये बात भी समझाई कि इंसान की कुछ कर गुजरने की लगन और इच्छाशक्ति को दुनिया की कोई ताकत नहीं हरा सकती। यहाँ कोई उपदेश नहीं था, कोई दिखावा भी नहीं। बस कुछ सपने देखने वाले लोग थे और सपनों को सच करने के लिए दिन-रात एक कर देने वाली उनकी मेहनत और उसके नतीजे थे।

Publishing Next panel discussion, 22 September 2019.

(बाएं से दाएं) अर्पिता दास (योडा), मंदिरा सेन (स्त्री-साम्य), राकेश खन्ना (ब्लाफ़्ट पब्लिकेशंस), इंदु चंद्रशेखर (तूलिका), ऋतु मेनन (विमेन अनलिमिटेड और काली फॉर विमेन), 22 सितंबर 2019। साभार : शिप्रा किरण।

उम्र के हर पड़ाव के लोग थे ये। एक तरफ़ विमेन अनलिमिटेड और काली फॉर विमेन की ऋतु मेनन, संगम हाउस की सह-संस्थापक और अनुवाद की दुनिया की हस्ती अर्शिया सत्तार, स्त्री-साम्य की संस्थापक मंदिरा सेन, प्रकाशक और तूलिका बुक्स की प्रबंध संपादक इंदु चंद्रशेखर जैसे वर्षों के अनुभवी लोग हमारे सामने थे। प्रकाशन और संपादन की दुनिया में कुछ वक़्त पहले ही कदम रखने वाले मुझ जैसे किसी इंसान के लिए, इनके अनुभव, इनके बताए रास्ते, तौर-तरीके शब्द-दर-शब्द याद रखे जाने वाले हैं। वहीं प्रकाशन की दुनिया में नए और जोशीले, पैंथर्स पॉ के योगेश मैत्रेय जैसे युवा प्रकाशक भी थे। योगेश के प्रकाशन की दुनिया में आने की कहानी रोमांचित कर देने वाली थी। इन प्रकाशकों ने बताया कि किताबें तकनीक और विवेक के अलावा गहरे जज़्बातों से भी बनतीं हैं – बुद्धि और भावनाओं का मेल होती हैं किताबें। और समझ आया कि सिर्फ़ लेखक ही शब्दों का जादूगर नहीं होता और ना ही वह अकेला उन्हें मानी दे सकता है। उन शब्दों को किताब की शक्ल देनेवाला कई बार लेखक से ज़्यादा बड़ा जादूगर होता है।

गोवा के दो युवा और उत्साही प्रकाशक – डॉग इयर्स प्रिंट मीडिया और सिनमन टील के संस्थापक, लियो और क्वीनी – ने अपनी छोटी सी टीम के साथ इस शानदार कॉन्फ्रेंस का आयोजन किया था। एक ऐसे समय में जब लिखने-पढ़ने को अपराध घोषित किया जा रहा हो, तब ऐसे किसी साझा मंच की ज़रूरत और बढ़ जाती है। यह मंच मुहैया कराने के लिए, किताबों की दुनिया को ऐसे आयोजकों का शुक्रगुज़ार होना चाहिए। मैं एक ऐसी जगह थी जहाँ भाषा, क्षेत्र और जेंडर से जुड़े तमाम स्टीरियोटाइप्स बेमानी लगे। खासकर जेंडर से जुड़े। महिला प्रकाशकों, संपादकों, समीक्षकों और अनुवादकों की मंच पर शानदार उपस्थिति और भागीदारी से भी इस कॉन्फ्रेंस की सार्थकता समझी जा सकती है। मुझे ये कहने में कोई गुरेज़ नहीं कि इस तरह के आयोजन कराने वाले और लोगों को भी पब्लिशिंग नेक्स्ट से इस तरह की भागीदारी और नेतृत्व की बराबरी सीखनी चाहिए।

पब्लिशिंग नेक्स्ट का यह कॉन्फ्रेंस, प्रकाशन की दुनिया के साथ इतने करीब से जुड़ने का मेरा पहला अनुभव था, जहाँ प्रकाशन के पहलुओं को समझने के अलावा, यह भी समझ आया कि सपनों पर यकीन करना कितना ज़रूरी है।

फ़ीचर फ़ोटो : (बाएं से दाएं) सुधन्वा देशपांडे, पुर्बाषा सरकार, शिप्रा किरण, नज़ीफ मुल्ला। साभार : सुधन्वा देशपांडे।

शिप्रा किरण लेफ़्टवर्ड बुक्स की एडिटर हैं।

पब्लिशिंग नेक्स्ट 2019 का आयोजन 19 सितंबर से 22 सितंबर 2019 तक गोवा साइंस सेंटर में किया गया।