न्यूज़क्लिक के साथ खड़ा है लेफ़्टवर्ड बुक्स

पिछले कुछ महीनों से देश भर के खेतिहर मजदूर और किसान केंद्र सरकार के तीननए कृषि कानूनों के खिलाफ एक साहसिक आंदोलन कर रहे हैं। ये श्रमिक और किसान कड़कड़ाती ठंड में भी डटे रहे, इन्होंने हर तरह के दमन और उत्पीड़न का बहादुरी से सामना किया। इन्हें आतंकवादी और देशद्रोही तक कहा गया, पर इन सबसे इनका हौसला नहीं टूटा। वे इस बात को लेकर दृढ़संकल्प हैं कि अपनी आजीविका और जीवन की हर कीमत पर रक्षा करेंगे।

अगर दिल्ली के मीडिया संस्थान ‘न्यूज़क्लिक’ की टीम ने पूरे साहस और बेबाकी के साथ इन किसान-मजदूरों की राय सबके सामने प्रस्तुत नहीं की होती तो शायद दुनिया को उनके विचारों का पता भी नहीं चल पाता। न्यूज़क्लिक के रिपोर्टर वाटर कैनन की बौछार और पुलिस की लाठियां झेलते हुए विरोध के विभिन्न मोर्चों पर पहुंचे और उन्होंने वहां किसानों, मजदूरों से बातचीत की, उनके बयान दर्ज किए। उन्होंने वहां पहुंचे अन्य लोगों और राजनेताओं से भी बात की। यह उच्च स्तर की रिपोर्टिंग थी।

हमें गर्व है कि लेफ़्टवर्ड ने न्यूज़क्लिक के संपादक प्रांजल के संपादन में एक संकलन ‘कबहूं ना छाड़े खेतः दिल्ली के दरवाज़े पर किसान की दस्तक’ प्रकाशित किया है, जिसमें किसान आंदोलन से जुड़ीं विभिन्न रपटें और टिप्पणियां शामिल हैं। इसका अंग्रेजी अनुवाद शीघ्र ही आने वाला है।

9 फरवरी को केंद्र सरकार ने न्यूज़क्लिक के संपादकों के घरों और अन्य परिसरों के साथ न्यूज़क्लिक के दफ्तर पर छापा मारने का फैसला किया। बिना किसी आधार के मीडिया में दोषारोपण शुरू हो गया। प्रवर्तन निदेशालय के अधिकारी दो दिनों तक संपादकों और पत्रकारों से पूछताछ करते रहे, उनकी ऑन और ऑफलाइन सामग्री की जांच करते रहे। उनके कंप्यूटरों में उन्हें पूरी ईमानदारी और कर्तव्यनिष्ठा से तैयार की गई रिपोर्टें ही मिली होंगी, जिन्हें हमने पुस्तकों की एक श्रृंखला  के रूप में पुनर्प्रकाशित किया है। इनमें जातिगत और पितृसत्तात्मक ऊंच-नीच जैसी उन तमाम बीमारियों की चर्चा है, जिनसे आज का भारत ग्रस्त है। लेफ़्टवर्ड बुक्स से जुड़े हम सब लोग यह आशा करते हैं कि अधिकारीगण उस भारत के बारे में भी थोड़ा-बहुत जानेंगे,जिसे दफ़्न कर दिया गया है। हम उम्मीद करते हैं कि हमारी प्रकाशित चीजों को पढ़कर उनकी आंखें खुलेंगी और वे एक छोटे से संपन्न तबके के फायदे के लिए देश के बहुसंख्य नागरिकों के साथ किए रहे अत्याचारों के बारे में जान सकेंगे।

प्रांजल, प्रबीर पुरकायस्थ तथा इन जैसे कई और लोग, जिन्हें कार्रवाई के दौरान रोका और परेशान किया गया, लेफ़्टवर्ड बुक्स के लेखक हैं। उनके और न्यूज़क्लिक के साथ अपने रिश्ते पर हमें गर्व है। हम न्यूज़क्लिक के साथ खड़े हैं और उस भारत की कहानियां कहते रहेंगे जो ताकत, मुनाफे और रसूख़ के सामने झुकने से इंकार करता है।

विजय प्रशाद ( मुख्य संपादक)
सुधन्वा देशपांडे (प्रबंध संपादक)
लेफ़्टवर्ड बुक्स