लेफ़्टवर्ड बुक्स के संपादकों की ओर से

-अंग्रेज़ी में पढ़ें-

प्यारे दोस्तो,

भारत में इन दिनों भीड़ द्वारा ह्त्या (लिंचिंग) जैसी क्रूर और दिल दहला देने वाली घटना एक सामान्य सी बात बन कर रह गई है। आए दिन पागल भीड़ किसी न किसी बहाने से मासूमों की हत्या कर रही है. ये हत्याएं यूं ही नहीं होतीं। अक्सर ये प्रायोजित होती हैं। धर्म और सम्प्रदाय के नाम पर फैलाई जा रही नफरत का अंजाम होती हैं। इन दिनों खासकर जब से भाजपा सरकार सत्ता में आई है, ऐसा लग रहा है कि लिंचिंग ने इस देश में महामारी का रूप धारण कर लिया है। भाजपा सरकार ने अब जाकर इस तरफ ध्यान देने के बारे में सोचा है। गृह मंत्री अमित शाह से कहा गया है कि वो अपनी नजरें उस तरफ भी घुमाएं और देखें कि लिंचिंग की ये आग कितनी तेज और खतरनाक रूप धारण कर चुकी है। जो रुकने का नाम भी नहीं ले रही बल्कि और बुरी तरह फ़ैल रही है। इस आग में दादरी (जहां 2015 में भीड़ ने मोहम्मद अखलाक़ की हत्या कर दी थी) से लेकर धातकीडीह (जहाँ 2019 में तबरेज़ अंसारी को मार डाला गया) तक झुलस रहे हैं। लेकिन केंद्र की भाजपा सरकार और भाजपा शासित राज्यों के रिकॉर्ड पर गौर करें तो यह मान लेना मूर्खता होगी कि वे इन क्रूरतम हत्याओं पर अचानक से लगाम कस पाएंगे।

लेफ़्टवर्ड बुक्स ने कुछ हफ्ते पहले ही अपनी नई किताब प्रकाशित की – मोदीनामा : हिंदुत्व का उन्माद। लेखक हैं – सुभाष गाताडे। गाताडे पत्रकारिता, एक्टिविज्म और लेखन की दुनिया का जाना पहचाना नाम हैं। इस दौर में भारत जिस तरह की क्रूरता और हिंसा में गहरे धंसा हुआ है, उसकी झूठी और साफ़-सुथरी छवि दिखाने की कोशिश गाताडे नहीं करते। इस किताब में वह अपने चिर-परिचित निर्भीक अंदाज़ में नरेंद्र मोदी की सरकार के पहले कार्यकाल में हुई हिंसाओं का लेखा-जोखा प्रस्तुत करते हैं। भाजपा के विधायक द्वारा उन्नाव रेप पीड़िता के हत्या की कोशिश वर्तमान भारत की इसी हिंसा और क्रूरता का एक ताजा उदहारण है।

AG Noorani The RSS book coverRaosaheb Kasbe Decoding the RSS book cover

पिछले कुछ महीनों में हमने RSS पर दो किताबें प्रकाशित की हैं जिनमें 1925 से चले आ रहे सामाजिक घुटन और विषाक्तता के पूरे दर्शन के विकास को देखा जा सकता है। ए.जी. नूरानी की The RSS: A Menace to India और रावसाहब कास्बे की Decoding the RSS: Its Tradition and Politics – ये दोनों किताबें RSS और उसके राजनैतिक हथियार बी.जे.पी. के नज़रिए का करारा जवाब हैं। 'गौरक्षकों' द्वारा की जा रही लिंचिंग की घटनाएं किसी खूनी गैंगस्टर द्वारा यूं ही कर दी जाने वाली हत्याएं नहीं, बल्कि यह RSS की विचारधारा से निकली सोची-समझी साजिश है। यह सिर्फ़ कोई आपराधिक घटना नहीं बल्कि राजनैतिक हिंसा है।

Who Was Shivaji book cover

इसी हिंसा की क्रूरता और बर्बरता ने लेखकों और प्रकाशकों को भी अपनी चपेट में लिया है। लेफ़्टवर्ड बुक्स से प्रकाशित Who Was Shivaji? के लेखक और कम्युनिस्ट लीडर गोविंद पानसरे को भी इस हिंसा ने नहीं बख्शा।

red books day logo

लेफ़्टवर्ड बुक्स ने पिछले साल एक बातचीत की शुरुआत की। इसके खास मुद्दे ये थे कि लेखकों और बुद्धिजीवियों पर लगातार बढ़ते आक्रमणों के बारे में किस तरह लोगों के बीच जागरुकता फैलाई जाए। किस तरह उन्हें इन आक्रमणों की सच्चाई बताई जाए। और कैसे दुनिया को इन जरुरी मुद्दों और लेखकों के साथ खड़े होने के लिए प्रेरित किया जाए। इन्हीं और ऐसे ही तमाम जरुरी मुद्दों को ध्यान में रखते हुए हमने रेड बुक्स डे मनाने का निर्णय लिया।

Communist Manifesto 1848

वह 21 फरवरी 1848 का एक दिन था, जिस दिन युवा मार्क्स और एंगेल्स ने कम्युनिस्ट पार्टी का घोषणापत्र के पहले संस्करण को प्रकाशित किया था। हमने उस दिन को रेड बुक्स डे के नाम से मनाने का फैसला किया है। उस दिन घोषणापत्र का वैश्विक पाठ किया जाएगा। अर्थात विभिन्न भाषाओं में हम और हमारे साथी दुनिया के कई देशों में मैनिफेस्टो का पाठ करेंगे। जापान से लेकर चिले तक। रेड बुक्स डे के इस अवसर पर अब तक हमारे साथ लगभग 25 अंतर्राष्ट्रीय सहयोगी हैं। भारतीय साथियों में हमारे साथ हैं – भारती पुत्तकालयम (तमिलनाडु), चिंता (केरल), देशेर कथा (त्रिपुरा), नेशनल बुक एजेंसी (प. बंगाल), नव तेलंगाना (तेलंगाना), और प्रजा शक्ति (आंध्र प्रदेश)। दक्षिण कोरिया के सेकेंड थीसिस से लेकर ब्राज़ील के लिवरारिया एस्प्रेसाओ पॉप्युलार इसमें हमारा साथ दे रहे हैं। ये सभी प्रकाशन समूह – बुक स्टोर और राजनीतिक आन्दोलन – रेड बुक्स डे के उस ख़ास मौके पर अपनी-अपनी भाषाओं में घोषणापत्र के सार्वजनिक पाठ (पब्लिक रीडिंग) का आयोजन करेंगे।

Comrade M A Baby addressing the conference

members of the audience

इस अभियान के ही एक हिस्से के तौर पर भारतीय पुत्तकालयम ने तमिलनाडु के ऊटी में 27 और 28 जुलाई को मैनिफेस्टो और रेड बुक्स डे पर केन्द्रित दो-दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) पोलित ब्यूरो के सदस्य एम. ऐ. बेबी ने इस कार्यशाला को संबोधित करते हुए मैनिफेस्टो के इस सार्वजनिक पाठ के महत्व, दुनिया पर इसके प्रभाव, श्रमिकों और किसान आंदोलनों को और सुदृढ़ करने के लिए मैनिफेस्टो और इसकी परंपरा की ओर लौटने की ज़रूरत पर चर्चा की। राज्य की भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के नेताओं – जी. रामाकृष्णन और एन. गुणसेकरन के अलावा भारती पुत्तकालयम से हाल ही में प्रकाशित मैनिफेस्टो के तमिल संस्करण के अनुवादक एम. शिवलिंगम ने भी कार्यशाला को संबोधित किया।

communist manifesto cover tamil edition

भारती पुत्तकालयम के प्रकाशक के. नागराजन और संपादक पी. के. राजन इस बात को सुनिश्चित करने के लिए लगातार कड़ी मेहनत कर रहे हैं कि फ़रवरी 2020 यानी रेड बुक्स डे के अवसर पर मैनिफेस्टो के शानदार 10,000 सार्वजनिक पाठ हों। (और मैनिफेस्टो के तमिल संस्करण की 100,000 प्रतियां बिक सकें।) यह संख्या अद्भुत और ऐतिहासिक होगी।

हमें ये बताते हुए बेहद ख़ुशी है कि लेफ़्टवर्ड बुक्स ने कम्युनिस्ट पार्टी का घोषणापत्र का नया संस्करण प्रकाशित किया है। यह द्विभाषी संस्करण है, मतलब हिंदी और अंग्रेज़ी दोनों भाषाओं में। इसका हिंदी अनुवाद सीपीआई(एम) के पोलित ब्यूरो की सदस्य सुभाषिनी अली ने किया है। यह अनुवाद सरल तो है ही साथ ही एक ख़ास ताजगी, लय और गति से भरा है जो युवा मार्क्स-एंगेल्स को समझने के झरोखे खोलता है। रेड बुक्स डे के मौके पर हम भारत के हिंदी प्रदेशों या हिंदी बेल्ट में मैनिफेस्टो के इस नए हिंदी अनुवाद का पाठ करेंगे।

रेड बुक्स डे में शामिल होने के लिए संपर्क करें redbooksday@leftword.com पर। रेड बुक्स डे के आयोजक सौरदीप रॉय लगातार आपके संपर्क में रहेंगे।

हम उम्मीद करते हैं कि लेफ़्टवर्ड बुक क्लब के सदस्य रेड बुक्स डे में पूरे उत्साह से शामिल होंगे। अगर आप एक ही शहर में रहते हैं तो हम आपको एक दूसरे से जोड़ने की कोशिश करेंगे। आप बुकस्टोर्स पर पहुंच कर भी रेड बुक्स डे के इन आयोजनों का हिस्सा बन सकते हैं, इसके अलावा आप अपने खुद के आयोजनों या इवेंट्स की व्यवस्था भी कर सकते हैं। रेड बुक्स डे में भाग लेने के बारे में विस्तार से और सूचनाएं हम जल्द ही आप तक पहुंचाएंगे।

हम उम्मीद करते हैं कि रेड बुक्स डे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर वामपंथ का एक बेहद ख़ास हिस्सा होगा। आएं इसमें शामिल हों।

सुधन्वा देशपांडे, विजय प्रशाद

संपादक, लेफ़्टवर्ड बुक्स